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वदनपै वारों तन मन प्रान / स्वामी सनातनदेव

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अनुपम वदनारविन्द ॥61॥
राग भूप-कल्याण, तीन ताल 22.7.1974

वदन पै वारों तन मन प्रान।
निरखि अनूपम छबि मोहन की भूले लोचन-बिहग उड़ान।
सोहत सिखि-सिखण्ड सिर पै सखि! मानहुँ काम-केतु <ref>कामदेव की ध्वजा</ref> फहरान।
कारी घुँघरारी अलकावलि राजत अलि-कुल भीर समान॥1॥
जुगल भृकुटि बिच तिलक अनूपम, मनहुँ मार तानेहु धनु-बान।
खंजन-नयन निरखि सो भयबस ठिठकि रहे नहिं भरहिं उड़ान॥2॥
मणि-कुण्डल सोहहिं स्रवनन में, मोहहिं कल कपोल-झलकान।
सोहहिं मनहुँ उभय दिसि दरपन झलमल-झलमल झलक महान॥3॥
नासा-बेसर की अनुपम छबि चुगत कीर जनु जलज सुहान।
अरुन अधर बिच दन्तावलि जनु जलज<ref>कमल</ref> कलिन बिच जलज<ref>मोती</ref> वितान॥4॥
मनमोहनि मुसकनि मोहन की, चितवन मनहुँ मदन के बान।
कहँ लगि सुखमा कहहुँ वदन की, मेरी तो यह जीवन-प्रान॥5॥

शब्दार्थ
<references/>