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मोहिं लागी लगन मिलन की / स्वामी सनातनदेव
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राग मध्यमाद, तीन ताल 6.9.1974
मोहिं लागी लगन मिलन की।
और लगन कोइ लगत न मनमें, पुनि-पुनि सुरति ललन की॥
मेरे जीवन-धन मनमोहन, हुमकन पद-परसन की।
उनही की रति में मति बड़ी, दसा यही कन-कन की॥1॥
उन बिनु कछु न सुहाय मोहि, मैं भूली सुधि तन-मन की।
चित पै चढ़ी रहत वह मूरति, सुरति यही छिन-छिन की॥2॥
चित-वित्त मेरो उन लीन्हांे, ललक यही नयनन की।
बिनु देखे अकुलाहिं निरन्तर, लगी लगन दरसन की॥3॥
अपनो और न लगत कोउ अब, लई सरन चरनन की।
मेरे प्रान-प्रान मनमोहन, निज निधि मो जीवन की॥4॥
उनही के तन मन धन जन सब, मोहिं न ममता कन की।
एकमात्र वे ही बस मेरे, मैं हूँ केवल तिन की॥5॥
रही न मेरी मति गति रति कछु, यही धारना मन की।
ज्यों चाहंे त्यों मोहिं नचावै, मैं पुतली मोहन की॥6॥