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मेरे सब कुछ तुम ही स्याम! / स्वामी सनातनदेव
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राग सारंग, तीन ताल 10.9.1974
मेरे सब कुछ तुम ही स्याम।
तुम बिनु मोहिं न कल एकहुँ पल, मेरे प्रानाराम॥
प्रानन के हो प्रान प्रानधन! मेरे नित विसराम।
जल बिनु मीन दीन ज्यों त्यों ही तुम बिनु मैं घनस्याम॥1॥
तुम हीसों है लगत हिये की, जगसों रह्यौ न काम।
पे तुव दरस-परस बिनु प्यारे! रहत हियो छुत-छाम<ref>भूखा-प्यासा</ref>॥2॥
आसा ही में गयी आयु सब, सर्यौ न एकहुँ काम।
कहा करों कछु समुझ न पाऊँ, तुमहि बताओ स्याम॥3॥
अपनो अपने में न लगत कछु, तुव कर दई लगाम।
फिर हूँ क्यों तुम ही कों तरसत, लगत विधाता वाम॥4॥
तुम्हरो ही हों सदा-सदा, पै लखे न ललन ललाम।
कैसे चैन होय नैननकों, लगी ललक अविराम॥5॥
अपनो तो कछु रह्यौ न बस अब, तुम जानहुँ घनस्याम।
तरसाओ वा सरसाओ, यह तकै न दूजो ठाम॥6॥
शब्दार्थ
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