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श्री गणपति की याद में - 3 / पुष्प नगर / आदर्श
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सुन्दर सवारियों के बीच
जिसने पसंद किया
चूहे को-
वाहन के रूप में,
और दिया
तुच्छ को भी,
लघु को भी
गौरव अपरिमित।
देख कर अपने बड़े भाई
स्वामिकार्तिक को,
ललचा के बैठे मंजु मोर पर,
द्वेष नहीं माना,
मुसकाया भर
संगम बड़प्पन का-
बचपन का मान कर
वह अपूर्व शक्ति
वह सारे जगत का बन्धु
चूहे के माध्यम से
पहुँचा जो
कंगाल की कुटी में और
राजा के महल में,
संकट में फंसे
मानवों के जाल काटने।
विघ्नों का विनाशक
विनायक यह
मेरा भी सहायक हो
चरणों में प्रणाम मेरा
शत-शत स्वीकार करें।