भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभिनन्दन भारती तुम्हारा / शशि पाधा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:30, 29 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि पाधा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अधरों ने जब वाणी पाई
प्रथम शब्द में तू ही बोली
हंसती होगी कभी -कभी तुम
सुन के मेरी बोली भोली

प्रथम लेखनी पर आ बैठीं
थाम उँगली अक्षर साधे
आढ़ी-तिरछी रेखाओं में
कभी थे पूरे कभी थे आधे

अब तक भी मैं ऐसी मैया
प्रतिदिन ढूँढूँ सबल सहारा
अभिनन्दन हे मात तुम्हारा।

भाव-कल्पना रूप तेरे ही
गीत रचूँ या कथा सुनाऊँ
अद्भुत तेरी ज्ञान निधि से
अक्षत मोती माल बनाऊं

ज्ञानी गाएँ महिमा तेरी
सुन-सुन मन गर्वित हो जाता
मधुर तेरे शब्दों का जादू
रोम -रोम हर्षित कर जाता

देस रहें, परदेस रहें हम
निज भाषा में ही मान हमारा।
नमन तुम्हें भारती हमारा।
अभिनन्दन हे मात तुम्हारा