भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिख दूँ नया विधान / शशि पाधा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:46, 29 नवम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उदयाचल पर अरुणिम सूरज
करता नव आह्वान
नए वर्ष के लक्ष्य पटल पर
लिख दूँ नया विधान

प्रेम रंग मैं घोलूँ ऐसा
धरती भीगे–निखरे
न सीमा पर अस्त्र–शस्त्र हों
न कोई बिछुड़े – सिहरे
हर रोते बच्चे के मुख पर
मल दूँ चिर मुस्कान
ऐसा लिखूँ विधान

पर्वत- तरुवर, सागर- झरने
धरती का श्रृंगार
रक्षा डोरी ऐसी बाँधू
निर्भय हो संसार

निर्मल नभ की सीमाओं तक
पंछी भरे उड़ान
ऐसा लिखूँ विधान

यह जगति तो साँझी सबकी
फिर कैसा बँटवारा?
सुख- साधन अधिकार सभी के
मानुष क्यों मन हारा?

नव पाहुन की झोली में मैं
ढूँढूं जन कल्याण
नए वर्ष की नई भोर में
लिख दूँ नया विधान