भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीत गए उजियारे दिन / शशि पाधा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:04, 29 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि पाधा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बीत गए उजियारे दिन।
अम्बर छाया गहन कुहासा
सूर्य किरण में घोर निरासा
कोन किसे दे चैन दिलासा
धरती के माथे सिकुडन
बीत गए उजियारे दिन
धुआँ-धुयाँ हो गई दिशाएँ
धूलि धूसरित बहें हवाएँ
पंख कहाँ पंछी फैलाएँ
घुटे-घुटे बीतें पल-छिन
सहमे से मटियाले दिन
सूनी हो गईं गली-चौपालें
पनघट सूना, कुन्द कुदालें
बरगद से सब आँख चुरालें
आँगन, देहरी ममता खिन्न
गिन गिन घड़ियाँ बीते दिन
जंगल पर्वत साँस कसैली
धूप ने ओढ़ी चुनरी मैली
बंधी पडी तारों की थैली
पीर कथाएँ हैं अनगिन
कहाँ छिपे उजियारे दिन?