इक ख़त बंद दे गया
मौसम का डाकिया,
भीनी सुगंध दे गया
मौसम का डाकिया।
नाम ना, पता नहीं
ना कोई मोहर लगी,
द्वार पर खड़ी –खड़ी
रह गई ठगी –ठगी
कांपते हाथ में
इक उमंग दे गया
मौसम का डाकिया।
किस दिशा, किस छोर में
जा छिपूँ, ले ऊडूँ
आँचल की ओट में
बार –बार मैं पढूँ।
मौसमी गीत का
राग- छंद दे गया
मौसम का डाकिया।
मीत कोई देस से
क्या मुझे बुला रहा
बिन लिखे अक्षरों, से
मुझे रुला रहा
अधर पे मुस्कान की
इक सौगंध दे गया
मौसम का डाकिया।
अधखुली परत में
छिपी थी फूल पंखुड़ी
देश काल लाँघ कर
याद कोई आ जुड़ी
मौन पतझार में
रुत वसंत दे गया
मौसम का डाकिया!!