क्षण भंगुरता के जीवन / राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल
क्षण भंगुरता के जीवन को अमर बनाता चल।
नश्वरता में शाश्वत के धुन दोहराता चल।
मुसाफिर गुनगुनाता चल,
बटोही गीत गाता चल।।
सही है नित्य सूरज डूबता है
काली रात आती है।
मगर युग युगों से ऊषा की किरण
जीवन का नया संदेश लाती है।
मरण की कोख से जीवन का उदय हो
ध्वंश को देकर चुनौती जीवन अभय हो
मृत्यु का तू भार लेकर
आनंद से मुस्कराता चल
मुसाफिर गुनगुनाता चल।
बटोही गीत गाता चल।।
फूल घड़ी भर खिलकर
झर जाते वायु झकोरों में
ल्ेकिन उनका अमर हास,
भर जाते दिगंत के छोरों में
क्षण भर का शैशव, दुनिया के नन्हों के
माँ की गोदी में इठलाना, भरना किलकारी
वात्सल्य अमर है शाश्वत है
अस्तित्व मिटे, यह रहता है मनहारी।
दुनिया मिटती है जग वंचन है
जो थिर है उसको पाता चल।
मुसाफिर गुनगुनाता चल,
बटोही गीत गाता चल।।
मानव जीवन की अनवरत श्रंृखला
दृग पट से होते जाते ओझल
मैं जान रहा, दैहिक काया की नश्वरता
कल भी सूरज निकलेगा, तारे चमकेंगे पल-पल
जाने वाले की स्मृति में सूरज नया उगाता चल
पवन के सुखद झकोरों से जीवन पता लगाता चल
मुसाफिर गुनगुनाता चल,
बटोही गीत गाता चल।।
कल तक जो होता था, वह कल भी होगा
मिट्टी का मिट्टी में मिलना यही कहानी है
सत्य तत्व से भरी मृत्तिका, माटी है शिव सौन्दर्य लिए
जीवन माधुर्य का दिव्य पुंज यह तो बात पुरानी है
जो पाया है उसे भुलाता चल,
जो खोया है उसे अपनाता चल।
मुसाफिर गुनगुनाता चल,
बटोही गीत गाता चल।।