भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वातंत्रय समर का आरोहण / राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:30, 8 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल |अनुवादक= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वातंत्रय समर का आरोहण यह लोक शक्ति का रक्त ज्वाल।
संत्तावन का शंखनाद था, विदेशियों का महाकाल।।
वर्तमान की संबल कहानी
बीते अतीत का बोल बोलती
आहुतियों की रक्त धार
निर्माण दिशा की राह खोलती
संत्तावन की लौह क्रांति को
आज सहज विद्रोह बताना
मोड़ इमारत इतिहासों की
राजों के बल श्रेय चढ़ाना
करो मरो की सरगम वह जन जीवन का मुश्किल सवाल।
स्वातंत्रय समर का आरोहण यह लोक शक्ति का रक्त ज्वाल।।
त्रस्त अंचलों की करूणा की
विधवा सांसे सूनी राहें
बंधन नहीं मृत्यु अलिंगन
करने चली करोड़ों बांहे
वह निर्बल जनता जिसने
बलिदान का आह्नान किया था
तात्या मंगल लक्ष्मी का
जनता ने ही निर्माण किया था
ब्रिटिश हुकूमत झेल गयी वह जन उच्छावासित भूमि चाल।
स्वातंत्रय समर का आरोहण यह लोक शक्ति का रक्त ज्वाल।।
जन के बलिदानी वीरों का
इतिहास अभी तो लिखना है
बेपद हुकूमत शाही का
अभिशाप अभी तो मिटना है
रोटी और कमल की कीमत
इतनी कभी न सस्ती होगी
जिसके विरूद्ध हुंकार उठा
शिक्षित शोषण की बस्ती होगी
भारत माता की जय ध्वनि से थर्राया भूमंडल विशाल।
स्वातंत्रय समर का आरोहण यह लोक शक्ति का रक्त ज्वाल।।
संत्तावन की तलवारों से
जब अर्थी सजी गुलामी की
आजादी की नई सुबह को
जनता ने पहल सलामी दी
जन-जन का स्वर करवट बदला
हर कदम बढ़ा मैदान में
आजादी की पकड़ बाँह
पुरूषार्थ जगा बलिदान में
सूरज चमका किरणें थिरकी उन्नत था भारत का सुभाल।
स्वातंत्रय समर का आरोहण यह लोक शक्ति का रक्त ज्वाल।।
आजादी आरोहण का पहला पड़ाव
अब तो चढ़ना ही चढ़ना है
बंधन के दाग गये, अब नई सृष्टि के
सुंदर अक्षर गढना है
यह देश हमारा गांवों का
शहरों का भाग निहार रहा
जीवन यौवन का शव लादे
सत्ता-सुरसा पर वार रहा
है अभी तपस्या शेष रक्त में बढ़ने दो दिन-दिन उबाल।
स्वातंत्रय समर का आरोहण यह लोक शक्ति का रक्त ज्वाल।।
संत्तावन का शंखनाद था, विदेशियों का महाकाल।