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जितना जीता हूँ उतना मरता हूँ / कांतिमोहन 'सोज़'
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जितना जीता हूँ उतना मरता हूँ ।
सब जो करते हैं मैं भी करता हूँ ।।
मैं भी जीता हूँ धौंकनी की तरह,
साँस लेता हूँ आह करता हूँ ।
लोग समझें कि इसको वक़्त कहाँ
तेज़ चलता हूँ कम ठहरता हूँ ।
मौत का इन्तज़ार है लेकिन,
उसकी दस्तक से दिल में डरता हूँ ।
मिलना चाहो तो तख्लिये में मिलो,
ख़ुद से बेहतर कलाम करता हूँ ।
तू न देखेगा जानता हूँ मगर,
मैं तेरी राह से गुज़रता हूँ ।।