भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये हम गुनाहगार औरतें हैं / किश्वर नाहिद

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:16, 15 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किश्वर नाहिद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये हम गुनाहगार औरतें हैं
जो अहले जुब्बा की तमकनत से
न रौब खाएं न जान बेचें
न सर झुकाएं, न हाथ जोडें

ये हम गुनाहगार औरतें हैं,
के जिनके जिस्मों की फसल बेचें जो लोग
वे सरफराज ठहरे न्याबतें इम्तियाज ठहरें
वो दावर-ए-अहल-ए-साज ठहरें

ये हम गुनाहगार औरतें हैं
के सच के पचरम उठा के निकले
तो झूठ से शाहराहें अटी मिले हैं
जो बोल सकती थीं वो जबाने कटी मिली हैं
हर एक दहलीज पर सजाओं की दास्तानें रखी मिले हैं

ये हम गुनाहगार औरतें हैं
के अब तअक्कुब में रात भी आए
तो ये आंखे नहीं बुझेंगी
के अब जो दीवार गिर चुकी है
इसे उठाने की जिद न करना
ये हम गुनाहगार औरतें हैं
जो अहले जुब्बा की तमकनत से
न रौब खाएं न जान बेचें
न सर झुकाएं, न हाथ जोडें