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स्याम बिना मोहिं चैन परै ना / स्वामी सनातनदेव
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राग जौनपुरी, झूमरा 17.9.1974
स्याम बिना मोहिं चैन परै ना।
जबसों सखि! निरखी वह मूरति, पलहूँ सो उरसों निसरै ना॥
मैं हारी करि जतन विविध विधि, चित्त चढ़ी कबहूँ विसरै ना।
या मनकों जो बान परी सो अपने जतन किये सुधरै ना॥1॥
घर के मात-पिता बहु त्रासहिं, पै मोपै कोउ असर परै ना।
ऐसो ढीठ भयो यह मन सखि! काहू सों अब नैंकु डरै ना॥2॥
कहँ लगि कानि करों या कुल की, स्याम बिना मोहिं पलहुँ सरै ना।
वाकी वह मुसकन चितवन सखि नयननसों कबहूँ निसरै ना॥3॥
मैं तो भई स्याम की सजनी! करनी करि अस प्रीति जुरै ना।
वाही की हों जनम-जनमसों, और बात अब हिये फुरै ना॥4॥
लोक जाय परलोक जाय, अब यासों मेरो हियो डरै ना।
वह मेरो मैं वाकी आली! यह नातो अब कबहुँ टरै ना॥5॥
शब्दार्थ
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