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सपने / अरविन्द कुमार खेड़े
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दुर्दिनों में काटे
रतजगों से उपजा है यह दर्शन
कि कभी तो वो सुबह आएगी
जब करूँगा
सूर्य का स्वागत
अर्घ्य दूँगा सूर्य को
उस दिन
अपने जमीर को गिरवी रख
तुम्हारी अघायी आँखों से लूँगा
कुछ सपने उधार
बो दूँगा अपनी उनींदी पलकों में ।