भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता एक मुक़ाम है / नीलोत्पल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:05, 22 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलोत्पल |अनुवादक= |संग्रह=पृथ्वी...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बातें कितनी ही छोटी क्यों न हों
घेर लेती हैं

रात-बेरात अक्सर हमारे पास
वक़्त नहीं होता
जबकि यह सिर्फ़ एक जवाब है
दरअसल
हमारा अपना चेहरा है
और बेमियादी कपड़े से
ढँके हैं अपना अवसन्न चेहरा
दिक़्क़त यही है
हम घिरी बातों के साथ नहीं होते
बस यह एक पक्षपात है

हमारे अधीन कितनी ही
चीज़ों की लंबित सूची है
जो हर बार ज़ाहिर होती है
ना कहने पर
नहीं के साथ
हमारी संगति
छोड़ देती है उन गुमनाम पहाड़ों पर
जहाँ कोहरा अधिकता में
ढाँप लेता छोड़ी हुई दिक़्क़तों को

हम कभी बाहर नहीं आ पाते

शब्दों का एक लम्बा हाईवे है
जो कहीं ख़तम नहीं होता
कविता एक मुक़ाम है
जहाँ घिरी बातों के साथ
हम पहुँचते हैं