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हमारे बिल कठोर चीज़ों के बने / नीलोत्पल

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हम किसी बड़े-से बिल में
रहते हैं

चींटियां हमारे सरों से निकलती हैं
बिना आहट के

हम एक आध पाव या सवा सेर
जितनी चीज़े इकठ्ठा करते हैं
ये जरुरत से ज़्यादा अनिच्छाएं हैं
कि हम बंद आंखों से आवाज़ को
महसूस करने की कोशिश करते हैं
लेकिन ऐसा आंख वालों के साथ नहीं है

हमारी आवाज़ उस शोर की तरह है
जो खोलती नहीं रंगों को
बल्कि अदृश्य हिंसा की तरह
फैलती है चारों तरफ़

ये वक़्त शब्द पकड़ने का नहीं
उन्हें ढील चाहिए, ढील
मसलन पुरानी चीज़ों के
फेंके जाने के पहले तक
नए शीशों के बदल जाऩे तक

हमारे बिल कठोर चीज़ों के बने हैं
उनमें सिर्फ़ सांसे ली जाती हैं