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जा दुनिया आबाद बनी रय / महेश कटारे सुगम
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जा दुनिया आबाद बनी रय ।
सुख कौ पानी खाद बनी रय ।
उम्मीदें पूरी करवे खौं,
आस और औलाद बनी रय ।
इज़्ज़त में कोउ दाग न लगवै,
साख नाक मरजाद बनी रय ।
करवे की लौ बुझ नईं पावै,
हिम्मत जा फौलाद बनी रय ।
गिरवे कौ डर बिलकुल नईंयाँ,
फिर उठवे की साध बनी रय ।
सुगम कभऊँ जी अच्छौ करवे,
मीठी मीठी याद बनी रय ।