दोहा / भाग 7 / मतिराम
प्रगट कुटिलता जो करी, हम पर स्याम सरोस।
मधुप जोग बिख उगिलियै, कछु न तिहारो रोस।।61।।
हँसत बाल के बदन में, यों छवि कछू अतूल।
फूली चंपक बेलि तें, झरत चमेली फूल।।62।।
उदै भयो है जलद तू, जग कौ जीवन-दान।
मेरो जीवन हरतु है, कौन बैर मन मान।।63।।
मो मन मेरी बृद्धि लै, करि हरि को अनुकूल।
लै त्रिलोक की साहिबी, दै धतूर को फूल।।64।।
मधुप मोह मोहन तज्यों, यह स्यामनि की रीति।
करौ आपने काज कौं, तुम्हैं जाति सी प्रीति।।65।।
मन्त्रिनि के बस जो नृपत, सो न लहत सुखसाज।
मनहिं बाँधि दृग देत दृग, मन कुमार कौ राज।।66।।
लाल चित्र अनुराग सों, रँगति नित सब अंग।
तऊ न छाड़त साँवरो, रूप साँवरो रंग।।67।।
सरद चंद की चाँदनी, को कहिए प्रतिकूल।
सरद चंद की चाँदनी, कोक हिए प्रतिकूल।।68।।
लखत लाल मुख पाइहौ, बरनि सकै नहिं बैन।
लसत बदन सत पत्र सौ, सहसपत्र से नैन।।69।।
सित अम्बर जुन तियनि में, उड़ि उड़ि परत गुलाल।
पुंडरीक पटलनि मनो, बिलसत आतप बाल।।70।।