भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा / भाग 9 / रामसहायदास ‘राम’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:26, 30 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामसहायदास ‘राम’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिसद बसन मेहीन मैं, ती तन नूर जहूर।
मनू बिलूर फानूस मैं, दीपै दीप कपूर।।81।।

किहि बिधि जाउँ बसन्त मैं, विकसित बेलि निकुंज।
मो मुख लखि चहुँ ओर तें, झुकत झपत अलि पुंज।।82।।

चुगि चितवनि चारा परचि, गहे ढिठाई आय।
हाँसी फाँसी परि सकै, मन कुलंग न उड़ाय।।83।।

जब वाके रद की चिलक, चमचमाति जिहि कोति।
मंद होति दुति चन्द की, चपति चंचला-जोति।।84।।

त्रिभुवन सुखमा सार लै, सोम सलिल सों सानि।
रवि ससि साँचे ढार बिधि, रचे कंपोल सुजानि।।85।।

सी सी करि मुरि मुरि गई, जिन पहिरत तूँ बाल।
चूर-चूर चित ह्वै गयौ, तिन चुरियनु मैं लाल।।86।।

अलि बेचन चलिहैं चलो, सफल करहिं रसनाहिं।
जो रस गोरस मों भलो, सो रस गोरस नाहिं।।87।।

बलि कुंजत हैं कोकिले, गुंजत हैं अलिपुंज।
तने बितान लतान के, घने बने बन-कुंज।।88।।

कच चिकने मेचक चटक, चारु चिलक चित चोर।
छहरि रहे छवि छाय छुट, छुए छवा के छोर।।89।।

मुखहि अलक को छूटिवो, अबसि करै दुतिमान।
बिन बिभावरी के नहीं, जगमगात सितभान।।90।।