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दियना छू के तुम जगा दो / त्रिलोचन

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दियना छू के तुम जगा दो

बात बन ही जायगी


आँधी खंधकार की है

जान पर भई कआ पड़ी है फिर भी प्यास प्यार की है

कोई राग तुम कढ़ा दो

आशा मन ही जायगी


चोट खा के हिल गया है

दुःख सर्वदा नया है

फूल फिर भी खिल गया है

आँसुओं से नहला दो

दुबिधा छन ही जायगी


सभी जीना चाहते है

अँजुरी में माँगते है

अमृत पीना चाहते है

सब की चाहना बता दो

क्या विमन ही जायगी


(रचना-काल -22-2-62)