Last modified on 4 जनवरी 2015, at 02:30

ऊधो सफ़र बड़ा रेतीला / आनन्दी सहाय शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:30, 4 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनन्दी सहाय शुक्ल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ऊधो सफर बड़ा रेतीला ।।
घिस घुटनों तक पाँव रह गए, मरु की दारुण लीला ।।

हर बढ़ते पग के आगे
आड़े आया टीला
गिरते पड़ते पार किया तो
बदन पड़ गया ढीला
चक्रव्यूह टीलों का दुर्धर
ऊपर रवि चमकीला ।

रात न आती चाँद न उगता
केवल दिवस हठीला
रक्तवाहिनी नस में बहता
पावक तरल पनीला
ऊपर आगी नीचे आगी
सब कुछ रत्किम पीला
पड़े-पड़े असहाय देखता गड़ा वक्ष में कीला ।।