भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं तो स्याम की सहेली हेली! / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:24, 7 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वामी सनातनदेव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ध्वनि लोक-गीत, कहरवा 7.9.1974

मैं तो स्याम की सहेली हेली! रहूँ नित साथ री!
स्यामाजू के रंग राती, तिनके गुन-गीत गाती-प्रीति प्रतीति पाती,
माती प्रीति-पाथ री!।1॥
मेरी प्रान-प्रान-स्यामा, प्रीतम-रति रंग रामा,<ref>प्रीतम के प्रीति रंग में रमण करने वाली</ref> सुखमा-सुख-सील-ग्रामा,
प्रिय की प्राननाथ री!॥2॥
तिन की मैं चेरि-चेरी, स्वामिनि वे नित्य मेरी, तिनके रति-रंग-प्रेरी गाऊँ गुन-गाथ री!॥3॥
रस की निधान स्यामा, प्रीतमकी प्रान-रामा, रास-रंग-अंग भामा<ref>रास-क्रीडा के प्रधान अंगरूप में प्रकाशित होने वाली</ref> कनक-कान्ति गात री!॥4॥
तिन की मैं कृपा पाय, हुलसूँ हियमें अघाय, और कछु न अब सुहाय वही तात-मात री!॥5॥
प्रिया-पाद पदुम भं्रग,<ref>प्रियाजू के चरण-कमलों का भौरा</ref> मेरो सब अंग-अंग, रँगी सदा प्रिया रंग रति-रस उमहात री!॥6॥
रही और चाह नाहिं, बूड़ी रस रंग माहिं, गुनि-गुनि गुन दिवस जाहिं स्यामा-पद माथ री!॥7॥

शब्दार्थ
<references/>