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स्याम! मैं बिना मोल की चेरी / स्वामी सनातनदेव
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राग धनाश्री, तीन ताल 1.7.1974
स्याम! मैं बिना मोल की चेरी।
रहों सदा तुव रति-रस राती-यही मजूरी मेरी॥
अपनो मोहिं न रह्यौ काज कछु, टूटी ममता-घेरी।
जैसे चाहो मोहिं नचाओ, मैं कठपुतली तेरी॥1॥
अपनो ही मानहु अपनीकों, इतनी बिनती मेरी।
दूर रखो वा पास प्रानधन! सदा-सदा मैं तेरी॥2॥
बनी रहे नित सुरति तिहारी, तुम बिनु रहूँ अनेरी।
तुमने ही अपनाई प्यारे! कुछ करतूत न मेरी॥3॥
अपनाई तो रखो पास ही, करो न हेरा-फेरी।
तुव पद-पंकज की अलिनी मैं, और न गति-मति मेरी॥4॥
शब्दार्थ
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