भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रियाजू! मैं सदा तिहारी चेरी / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:28, 7 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वामी सनातनदेव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग रागेश्वरी, तीन ताल 16.7.1974

प्रियाजू! मैं सदा तिहारी चेरी।
चरन-चाकरी करों चावसों-यही जीविका मेरी॥
जानों और न काज-साज कछु, लाजहुँ सकल निबेरी।
परी रहूँ पौरी पै प्यारी! सेवा करों सबेरी॥1॥
तुम पौढ़ौ मैं पावँ पलोटूँ, पद-रज ही निधि मेरी।
जावक<ref>महावर</ref> रचि-रचि हिये सिहाऊँ, निरखहुँ नित छवि तेरी॥2॥
पाऊँ सीथ-प्रसादी अनु दिन ललकि-ललकि नित तेरी।
जनम-जनम पाऊँ सुहाग यह, यही लालसा मेरी॥3॥

शब्दार्थ
<references/>