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जीवन यों ही बीत्यौ जात / स्वामी सनातनदेव
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राग भीमपलासी, तीन ताल 2.8.1974
जीवन यों ही बीत्यौ जात।
बड़े भाग्य मानुष तनु पायो, तासों विषय कमात॥
खात-पियत सोवत दिन बीतहिं, पसुवत् वयस बितात।
कूकर-सूकर सो यह जीवन कैसे ताहिं सुहात॥1॥
दियो विवेक तोहिं श्रीहरि ने, क्यों तू ताहि भुलात।
तासों जो निज ध्येय न जान्यौ ‘मानुष’ वृथा कहात॥2॥
केवल मानुषकों ही हरि ने दई एक सौगात।
जासों मरनसील तनसों वह परम अमरपद पात॥3॥
अरे!अरे! तू छोड़ विषय-रस, काहे विष-फल खात।
पी-पी प्रीति-सुधा प्रीतम की, जासों मीचु डरात॥4॥
प्रीति-पग्यौ जीवन जीवन है, और वृथा उत्पात।
रसि-रसि स्याम सुधा रस प्यारे! औसर बीत्यौ जात॥5॥