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यह मन भयो विषय को खेरो / स्वामी सनातनदेव
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राग पटदीप, तीन ताल 20.9.1974
यह मन भयो विषय को खेरो।
किये, उपाय अनेकन, तो हूँ भयो न याको अबहुँ निबेरो॥
तजि पद-पंकज प्राननाथ के भटकत रहत सदा भट-भेरो।
करि-करि जतन हार ही मानी मिट्यौ न अब हूँ यह उरझेरो॥1॥
मेरो बल अब काम न आवत, दिन-दिन दूनो होत अनेरो<ref>निरंकुश, स्वच्छन्द</ref>।
यासों अब सब भाँति विवश ह्वै तक््यौ प्रानधन पग-तल तेरो॥2॥
सरन गहे की लाज रखहु हरि! करहु याहि अब निजपद-चेरो।
तुव पद-पंकज को मलिन्द ह्वै करै सदा यह तुहीं बसेरो॥3॥
और आस-विस्वास त्यागि सब, रहै सदा चरनन में डेरो।
तुव पद-रति को रसिक रहै नित, तजै और सब ही उरझेरो॥4॥
शब्दार्थ
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