बँसुरिया बाजी री! जमुना के तीर / स्वामी सनातनदेव
राग भैरवी, कहरवा 30.7.1974
बँसुरिया बाजी री! जमुना के तीर।
पी पी पी गरजत गरवीली, देत करेजो चीर॥
पिय के कर-कमलन बसी ‘पी-पी’ करत पुकार।
जान परत यासों सखी! पिय में याको प्यार॥
याकी यह ‘पी-पी’ ही आली! उपजावत उर पीर॥1॥
अथवा यह पिय को करत अधर-सुधा रस-पान।
यासों ताही को करत ‘पी-पी’ कहि यह दान॥
पै याकी यह ‘पी-पी’ सजनी! हमकों करत अधीर॥2॥
याही में पिय को सखी! है अति निरवधि प्यार।
याके रस में विवस ह्वै हम सब दईं विसारि॥
यासों याके अमृत-बोल हूँ लागहिं मानहुँ तीर॥3॥
पै जब याके बस भये प्रीतम परम उदार।
तों याहीकों हमहुँ गुरु क्यों न करें करि प्यार॥
याहीसांे गुरु-मन्त्र ग्रहन करि पावहिं प्रिय बल-वीर॥4॥
याने छूँछो हियो करि पाये प्रियतम स्याम।
हम हूँ सब कछु त्यागि अब भजि हैं प्राना राम॥
निश्चय ही तब कृपा कोर करि हरिहैं हरि हिय-पीर॥5॥