भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर-घरमे चूल्हि जरय हर हाथकें काज चाही / भास्करानन्द झा भास्कर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:49, 11 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भास्करानन्द झा भास्कर |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर-घरमे चूल्हि जरय हर हाथकें काज चाही
अप्पन सरकार हो, हमरा मिथिला राज चाही

डोम-चमार-पासवान, मुसहर-सोनार-मुसलमान
मैथिल-स्वाभिमान युक्त सर्वहारा समाज चाही

धर्म-कर्म-मर्म-ज्ञान, हम बांटि देलहुं दुनियाकें
पूजा-पाठ-अजान संग तिरहुतिया नमाज चाही

प्रगति समृद्धि समुन्नत, उन्नति पथ प्रशस्त
सपना साकार हो, स्वच्छ सुन्दर स्वराज चाही

पूरब पच्छिम दलानसं, उत्तर दक्खिन मचानसं
देश-संसदमे गूंज हो, जोर मैथिल आवाज चाही