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घर-घरमे चूल्हि जरय हर हाथकें काज चाही / भास्करानन्द झा भास्कर
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घर-घरमे चूल्हि जरय हर हाथकें काज चाही
अप्पन सरकार हो, हमरा मिथिला राज चाही
डोम-चमार-पासवान, मुसहर-सोनार-मुसलमान
मैथिल-स्वाभिमान युक्त सर्वहारा समाज चाही
धर्म-कर्म-मर्म-ज्ञान, हम बांटि देलहुं दुनियाकें
पूजा-पाठ-अजान संग तिरहुतिया नमाज चाही
प्रगति समृद्धि समुन्नत, उन्नति पथ प्रशस्त
सपना साकार हो, स्वच्छ सुन्दर स्वराज चाही
पूरब पच्छिम दलानसं, उत्तर दक्खिन मचानसं
देश-संसदमे गूंज हो, जोर मैथिल आवाज चाही