रास लीला / सुजान-रसखान
कवित्त
अधर लगाइ रस प्याइ बाँसुरी बजाइ,
मेरो नाम गाइ हाइ जादू कियौ मन मैं।
नटखट नवल सुधर नंदनंदन ने,
करि कै अचेत चेत हरि कै जतन मैं।
झटपट उलट पुलट पट परिधान,
जानि लागीं लाजन पै सबै बाम बन मैं।
रस रास सरस रँगीलो रसखानि आनि,
जानि जोरि जुगुति बिलास कियौ जन मैं।।179।।
सवैया
काछ नयौ इकतौ बर जेउर दीठि जसोमति राज कर्यौ री।
या ब्रज-मंडल में रसखान कछू तब तें रस रास पर्यौ री।।
देखियै जीवन को फल आजु ही लाजहिं काल सिंगार हौं बोरी।
केते दिनानि पै जानति हो अंखियान के भागनि स्याम नच्चौरी।।180।।
आजु भटू इक गोपकुमार ने रास रच्यौ इक गोप के द्वारे।
सुंदर बानिक सों रसखानि बन्यौ वह छोहरा भाग हमारे।
ए बिधना! जो हमैं हँसतीं अब नेकु कहूँ उतकों पग धारैं।
ताहि बदौं फिरि आबे घरै बिनही तन औ मन जौवन बारैं।।181।।
आज भटू मुरली-बट के तट नंद के साँवरे रास रच्यौ री।
नैननि सैननि बैननि सों नहिं कोऊ मनोहर भाव बच्यौ री।।
जद्यपि राखन कौं कुल कानि सबै ब्रज-बालन प्रान पच्यौ री।
तद्यपि वा रसखानि के हाथ बिकानी कौं अंत लच्यौ पै लच्यौ री।।182।।
कीजै कहा जु पै लोग चबाव सदा करिबौ करि हैं बजमारौ।
सीत न रोकत राखत कागु सुगावत ताहिरी गावन हारौ।
आव री सीरी करैं अँखिया रसखान धनै धन भाग हमारौ।
आवत है फिरि आज बन्यौ वह राति के रास को नाचन हारौ।।183।।
सासु अछै बरज्यौ बिटिया जु बिलोके अतीक लजावत है।
मौहि कहै जु कहूँ वह बात कही यह कौन कहावत है।
चाहत काहू के मूँड़ चढ़यौ रसखान झुकै झुकि आवत है।
जब तैं वह ग्वाल गली में नच्यौ तब तै वह नाच नचावत है।।184।।
देखत सेज बिछी री अछी सु बिछी विष सो भिदिगो सिगरे तन।
ऐसी अचेत गिरी नहिं चेत उपाय करे सिगरी सजनी जन।
बोली सयानी सखि रसखानि बचै यौं सुनाइ कह्यौ जुवती गन।
देखन कौं चलियै री चलौ सब रस रच्यौ मनमोहन जू बन।।185।।