सवैया
जोग सिखावत आवत है वह कौन कहावत को है कहाँ को।
जानति हैं बर नागर है पर नेकहु भेद लख्यौ नहिं ह्याँ को।
जानति ना हम और कछू मुख देखि जियै नित नंदलला को।
जात नहीं रसखानि हमैं तजि राखनहारी है मोरपखा को।।248।।
अंजन मंजन त्यागौ अली अंग धारि भभूत करौ अनुरागै।
आपुन भाग कर्यौ सजनी इन बावरे ऊधो जू को कहाँ लागै।
चाहै सो और सबै करियै जू कहै रसखान सयानप आगै।
जो मन मोहन ऐसी बसी तो सबै री कहौ मुय गोरस जागै।।249।।
लाज के लेप चढ़ाइ कै अंग पची सब सीख को मंत्र सुनाइ कै।
गारुड़ ह्वै ब्रज लोग भक्यौ करि औषद बेसक सौहैं दिखाइ कै।।
ऊधौ सौं रसखानि कहै लिन चित्त धरौ तुम एते उधाइ कै।
कारे बिसारे को चाहैं उतर्यौ अरे बिख बाबरे राख लगाइ कैं।।250।।
सार की सारी सो पारीं लगै धरिबे कहै सीस बघंबर पैया।
हाँसी सो दासी सिखाई लई है बेई जु बेई रसखानि कन्हैया।
जोग गयौ कुबजा की कलानि मैं री कब ऐहै जसोमति मैया।
हाहा न ऊधौ कुढ़ाऔ हमें अब हीं कहि दै ब्रज बाजे बधैया।।251।।