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निराला के प्रति / शेखर जोशी
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शेष हुआ वह शंखनाद अब
पूजा बीती !
इन्दीवर की कथा रही
तुम तो अर्पित हुए स्वयं ही ।
ओ महाप्राण !
इस कालरात्रि की गहन तमिस्रा
किन्तु न रीती !
किन्तु न रीती !!