पागल का गीत / भूपिन / चन्द्र गुरुङ
देखो, मेरी अंजलि से
जीवन का समुद्र ही चू कर खत्म हो गया है।
मेरे हथेलियों से गिरकर
जीवन का आईना बिखर गया है।
आँखों के अन्दर ही भूस्खलन में दब गए हैं
बहुत सारे सपनें।
यादों के लिए उपहार बताकर
थोडे से सपनें चुरा कर ले गए थे भूलने वाले
न उन सपनों को अपने आँखों में सजाए हैं
न मुझे वापस किये हैं।
दाय रिंगाते रिंगाते उखड आई धुराग्र कि तरह
मोडों को पार करते करते
उखडा हुआ एक दिल है
न उसको ले जाकर छाती में चिपकाने वाला
कोई प्रेमिल हात है
न उसको चिता में फैंकनेवाला
कोई महान आत्मा।
छाती के अन्दर
छटपटाहट का ज्वालामुखी सक्रिय है
बेचैनी का सुनामी सक्रिय है
मैं सक्रिय हुँ–
सडक में फैले सपनों के टुकडों को जोड्ने केलिए
और आईने में
दुःखों के द्वारा खदेड रहे आपने ही चहरे को देखने।
यह सडक ही है मेरा पाठशाला
यह सडक ही है मेरा धर्मशाला
मुझे किस ने पागल बनाया ए बटोही भाई
मेरा बुद्धि/ईश्वर
या ईस कुरुप राज्यसत्ता ने?
मैं कैसे गिरा ईस सडक पर
रात को तारों के उतरने वाले घरके छत से?
इसी सडक पर जमा कूडे में
मैं पाता हुँ मेरे देश का असली सुगन्ध
इसी सडक पर बहते भीड में
मैं देखता हुँ नङ्गा चल रहा अराजकता
यहीं सडक पर हमेशा मुलाकात होता है एक बूढे समयके साथ
जो हमेशा हिँसा के बीज बोने में व्यस्त रहता है
इसी सडक में हमेशा मुलाकात होता है एक जीर्ण देशके साथ
जो हमेशा अपने खोए हुए दिलको ढूँढ्ने मे व्यस्त रहता है।
विश्वास करो या नहीं
आजकल मुझे यह सडक
पैरों के निशानों के संग्रहालय जैसा लगता है।
मुझे पता है
ईसी सडक से होकर सिंहदरबार पहुँचकर
कौन कितने मूल्य मे खरिदा गया है,
इस सडक में चप्पल रगडने वालों के पसिने में पिसकर
कितनों ने माथे पे लगाए हैं पाप का चन्दन,
इस सडक पर
रोने वालों के आँसु के झुले में झूलकर
किस किस ने छुए हैं वैभव का उँचाई
वह भी मुझे मालूम है।
ए बटोही भाई
आप को भी तो मालूम होना चाहिए
प्रत्येक दिन
कितने देशवासियों के आँसु में डूबकर
सुखती है इस सडक की आँखें?
प्रत्येक रात
कितने नागरिकों के बुरे हातों से चिरकर
तडपता है इस सडक का हृदय?
पता नहीं क्या नाम जँचेगा इस सडक के लिए
यह सडक
थकित पैरों का संग्रहालय बना है
हारे हुए इंसानों के आँसु का नदी बना है
अनावृष्टि में चिरा पडा हुआ खेत जैसा
पैने हात के द्वारा फटा हुआ कलाकृति बना है।
कंगाल देश का
डरावना एक्स–रे बना है,
रोगी देश को उठा कर दौड रही
केवल एक्बुलेंस बना है।
घिनौने उपमाओं में
जो नाम दें तो भी ठीक है इस सडक के लिए
पर ए बटोही भाई
इस देश को जँचता
मैं एक नयाँ नाम सोच रहा हुँ
मैं एक सुन्दर नाम सोच रहा हुँ।