भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हेलो ! / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:37, 21 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निज री भासा भूत, तेवड़ी
थे मोटी अब खाई !

इतिआसां में आज कठई
थांरा नांव र नोरो,
मन में मोटा बण्या, भलाईं
पीटो लाख ढिंढोरो,

जलम देवती जुग-पुरूषां नै
बा भासा मुरझाई !

बरस चार सौ गया नै कोई
इस्यो नखतरी जायो,
भरत खंड में करयो हुवै जे
थांरो मान सवायो ?

थे प्रताप री भामासा री
खाई बैठ कमाई !

रवि ठाकुर बंगाली, गांधी
गुजराती जस गासी,
राजस्थान्यां ! थांरी पीढी
किण रो नांव गिणासी ?

सबळ करो निज री भासा नै
जद मिटसी निमळाई।