भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद 131 से 140 / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 22 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

131.
नहीं निवड़ो ग्यान रो
अबढो समद अपार,
पार हुसी जद छोडसी
बुध विचार री लार !

132.
भोग वस्तु बांटयां कटै
कद समाज रो रोग ?
संजीवण संवेदना
करसी मिनख निरोग !

133.
एक रूंख रा पानड़ा
सै री अलगी ओळ,
उळझ मती ईं भेद में
ओ अभेद रो खोळ !

134.
दाणां कर दाणो दियो
थारो पाछो फेर,
दाता री ईं मैर नै
मंगता मिनख अंवेर !

135.
पसु पंछी चुग्गै चरै
करै राम रिछपाळ,
मिनख गूंथ कोजो फस्यो
आज काल रो जाळ !

136.
उपज कांकरो सीप में
मोती बण्यो अमोल,
एक कडूमो पण हुुवै
कूख कूख रो मोल !

137.
कांई ठा टूट्या कता
तारा लाख किरोड़ ?
पण जाणै सगळा उगै
धुरजी सागी ठौड !

138.
तिण कर आडो साच रै
बणसी झूठ अबार,
थारै भवूं बिसूंजसी
सूरज दिन दोपार !

139.
बणयो दुनियादार जे
दरब संचणो सीख,
गाळण खातर गरब नै
बुद्ध मांगसी भीख !

140.
के अभखाई जे बसै
सागै कांटा फूल ?
ओलख उंडै मरम नै
समदरसी है मूळ !