भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अरबी घोड़े पर सवार / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:33, 28 फ़रवरी 2008 का अवतरण
अरबी घोड़े पर सवार
जैसे कोई राजकुमार
नदी में डाल गया हो अपना यौवन
और वह हो गई हो निहाल
ऎसा है उसका यौवन
जो नगर में आज नाची
और कुहकी--
आँखों में भरे मदिरा
और हाथ में लिए कटार !