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ईसुरी की फाग-16 / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऎसी पिचकारी की घालन, कहाँ सीख लई लालन

कपड़ा भींज गये बड़-बड़ के, जड़े हते जर तारन

अपुन फिरत भींजे सो भींजे, भिंजै जात ब्रज-बालन

तिन्नी तरें छुअत छाती हो, लगत पीक गइ गालन

ईसुर अज मदन मोहन नें, कर डारी बेहालन ।