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बिराजे आज सरजू तीर / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बिराजे आज सरजू तीर
चौकी चारु भनिन मय राजे,
तापर सिया रघुबीर।। बिराजे...
जनक लली दमिनि अति सुन्दर,
पिय धन श्याम शरीर।
पीताम्बर पट उत छवि छाजत,
इत नीलाम्बर-चीर।। बिराजे...
सिय सिर सुभग चन्द्रिका झलकत,
उत कलगी मंदीर।।
पिय कर वाम सिया हैं सोहे,
दाहिन कर धनु तीर।। बिराजे...
मृदु मुसकात बतात परस्पर,
हरत हृदय की पीर।।
कंचन कुंअरि निरखि यह शोभा,
रहो न तनमन धीर।। बिराजे...