भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बने दूल्हा छवि देखो भगवान की / बुन्देली
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:39, 27 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
बने दूल्हा छवि देखो भगवान की,
दुल्हन बनी सिया जानकी।
जैसे दूल्हा अवधबिहारी,
तैसी दुल्हन जनक दुलारी,
जाऊ तन मन से बलिहारी।
मनसा पूरन भई सबके अरमान की। दुल्हन बनी...
ठांड़े राजा जनक के द्वार,
संग में चारउ राजकुमार,
दर्शन करते सब नर-नार
धूम छायी है डंका निशान की। दुल्हन बनी...
सिर पर कीट मुकुट को धारें,
बागो बारम्बार संभारे, हो रही फूलन की बौछारें।
शोभा बरनी न जाए धनुष बाण की। दुल्हन बनी...
पण्डित ठांड़े शगुन विचारें,
कोऊ-कोऊ मुख से वेद उचारें।
सखियां करती हैं न्यौछारें,
माया लुट गई है हीरा के खान की। दुल्हन बनी...
कह रहे जनक दोई कर जोर,
सुनियो-सुनियो अवधकिशोर,
कृपा करो हमारी ओर।
हमसे खातिर न बनी जलपान की। दुल्हन बनी...