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सुकुमार सिया प्यारी / बुन्देली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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सुकुमार सिया प्यारी,
धीरे चलो सुकुमार।
देश-देश के भूप जुरे हैं,
कर-कर के अपनो शृंगार,
शृंगार सिया प्यारी। धीरे चलो...
कंकन किंकिन नूपर धुन-सुन,
त्रिभुवन की झंकार। धीरे चलो...
राजा जनक की कुंवारी है कन्या,
अति कोमल सुकुमार,
सुकुमार सिया प्यारी।
ले वर माला राम गले डाली,
हो रही है जय-जयकार,
जयकार सिया प्यारी।