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इन गलिन हो के लइयो री / बुन्देली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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इन गलिन हो के लइयो री,
रघुनाथ बन्ना खों।
मोर मुकुट सिर बांधौ राजा बनरे,
कलगिन साज सजइयो री।
रघुनाथ बन्ना खों।
कानन कुण्डल पैरों राजा बनरे,
झेलन साज सजइयो री।
रघुनाथ बन्ना खों।
छतियन बागौ पैरों राजा बनरे,
पनरस साज सजइयो री।
रघुनाथ बन्ना खों।
हांथन घड़िया बांधो राजा बनरे,
कंगन साज सजइयो री।
रघुनाथ बन्ना खों।
पांवन मौजा पैरों राजा बनरे,
माहुर साज सजइयो री।
रघुनाथ बन्ना खों।
इन गलिन हो कें लइयो री।
रघुनाथ बन्ना खों।