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होली क चहका / विनय राय ‘बबुरंग’

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होली क हुड़दंगी कविता सुना रहल बबुरंग बा
जेकरा मुँहे रंग ना लागल ऊहे त बदरंग बा।।

हरिअर-लाल रंग से सभकर मुँहनोचवा अस मूँह पोताइल
रंग क डरनी जा के केहू रहर खेत में भागि लुकाइल
केहू लुकाइल डाढ़ा देई के अइसन मचल हुड़दंग बा
होली क हुड़दंगी कविता सुना रहल बबुरंग बा।।

केहू दारू पी पी जाके नाली में डगराइल बा
केहू भांग ठंडई पी पी मन ही मन अगराइल बा
केहू अक बक गारी दे दे भउजाइन के करत तंग बा
होली क हुड़दंगी कविता सुना रहल बबुरंग बा।।

राम खेलावन ढारि के बोतलदिनहीं तरई गीनत बानऽ
केहू क मेहर आपन कहँऽ नसा में नाहीं चीन्हत बानऽ
बारह जोड़ा पुआ खा गइलन पेटवे भइल सुरंग बा
होली क हुड़दंगी कविता सुना रहल बबुरंग बा।।

केहू छोड़ावे बम पटाखा केहू छोड़े फुलझर्री
केतने प्रेमी आंखि मिलाई खूब खालँऽ खुसबर्री
गा रहल बा ईलू ईलू हिल मिल नाचत संग बा
होली क हुड़दंगी कविता सुना रहल बबुरंग बा।।

देवर के कुल भउजी मिलके अस रंग से नहवा दिहली
धइलस निमोनिया मचल तहलका रंग भंग करवा दिहली
डाक्टर आइल दवा दियाइल ना घर में रहल उमंग बा
होली क हुड़दंगी कविता सुना रहल बबुरंग बा।।

कूल पियक्कड़ गांव क भइया जब एक जगह बटुरा गइलें
ताल ठोंक के ताव में आके महाभारत मचा दिहले
चले लागल गोली डंडा भाला कट्टा ई त अलगे रंग बा
होली क हुड़दंगी कविता सुना रहल बबुरंग बा।।

जेकरा के पुआ ना मिलल चान के देखि संतोस कइल
अइसनो बानं मनई अबहीं ई देखी अफसोस भइल
केहू मांगत भीख बा अजुओ केहू उड़ावत चंग बा
होली क हुड़दंगी कविता सुना रहल बबुरंग बा।।