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मौत को पढ़ रही है ज़िन्दगी / केदारनाथ अग्रवाल
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मौत को पढ़ रही है ज़िन्दगी
जो मर गई है
अमरी अनाज पा कर
कर्ज़ का जाज बजा कर
(रचनाकाल : 19.10.1967)