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रैदास के दोहे / रैदास

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  • जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

  • कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।

वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।

  • कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।

तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।

  • रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।

तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।

  • हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।

दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।

  • हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।

ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।

  • मन चंगा तो कठौती में गंगा।


  • वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।

सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।