भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न धूप को है / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:02, 9 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=आग का आईना / केदारनाथ अग्रवा...)
न धूप को है
न और को है
अपना एहसास
मगर है
जैसे नहीं है
आदमी के पास
आदमी की शक्ल
आदमी का बोध
आदमी की अक्ल
उसका अस्तित्व
सपाट है--
सपाट
नदारद अस्तित्व का
अनंत सुनसान
(रचनाकाल : 27.01.1968)