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न सम्झुँ भन्छु तिमीलाई / हरिभक्त कटुवाल
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न सम्झुँ भन्छु तिमीलाई
नसम्झी बस्न के सक्थें?
नहेरूँ भन्छु तिमीलाई
नहेरी बस्न के सक्थें?
कि तिम्रो सम्झना उस्तो
कि मेरो छाती नै उस्तो
कहालिन्छ जव छाती
नधाई बस्न के सक्थें?
खिइने छैन यो सृष्टि
दुइ आँखाले हेर्दैमा
फुलेको सृष्टिको फूल
नसुँघी बस्न के सक्थें?
छ तिम्रो सम्झना मीठो
कमलो छाती छ मेरो
जसै चस्कन्छ यो छाती
नरोई बस्न के सक्थें?
जति सम्झ्यो उति मीठो
जता हेर्यो उतै सुन्दर
यो सुन्दर सृष्टिको गीत
नगाई बस्न के सक्थें?