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मुट्ठी भर उजियाळौ (2) / संजय आचार्य वरुण
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तू आव पाछौ
थारै जाणै सूं
म्हनै लखावै कीं खाली खाली
थारी हंसी रै ठहाकै मांय
म्हनै सुणीजता
जिनगाणी रा गीत
थारौ म्हारै खनै
आवणौ लागतौ जाणें
पृथ्वी काढ़ रैयी हुवै
सूरज री फेरी
अर दिन रात रो बणनौ
जाणै थारै कारण ही
हुय रैयो हैै।
थारै सामीं
घणी बार भरीजी
म्हारी आंख्यां
म्हारै उण हेत रा
कीं छांटा तो लाग्या हुसी थारै
जकौ निकळ्यौ हौ
म्हारी आंख्यां सूं।
तू म्हनै याद नीं आवै
क्यूं कै तू म्हनै
याद ई’ज रैवै।
तू वणजा गोळ मटोळ फूठरै सो
चंदरमा
अर म्हारै डागळै रै
ऊपर आय’र
थारै अपार खजानै सूं
म्हनै दे जा फगत
मुट्ठी भर उजियाळौ।