अन्तर्यात्रा / दीप्ति गुप्ता
क्या तुमने कभी अन्तर्यात्रा की है ?
नहीं...???
तो अब करना! अपने अन्दर बसी
एक–एक जगह पर जाना;किसी भी जगह को अनदेखा,
अनछुआ मत रहने देना!
तुम्हें अपने अन्दर की, खूबसूरत जगहें,
खूबसूरत परतें, बड़ी प्यारी लगेगीं,
सुख – सन्तोष देगीं, तुम्हें गर्व से भरेगीं
पर गर्व से फूल कर ,वहीं अटक मत जाना,
अपने अन्दर बसी, बदसूरत जगहों की
ओर भी बढ़ना…, सम्भव है; तुम
उन पर रूकना न चाहो, उन्हें नजर अन्दाज कर
आगे खिसकना चाहो, पर उन्हें न देखना,
तुम्हारी कायरता होगी, तुम्हारे अन्दर की सुन्दरता
यदि तुम्हे गर्व देंगी, तो तुम्हारी कुरूपता तुम्हें शर्म देगी!
तुम्हारा दर्प चकनाचूर करेगी, पर..., निराश न होना
क्योंकि, अन्दर छुपी कुरूपता का,कमियों का,खामियों का..,
एक सकारात्मक पक्ष होता है, वे कमियाँ, खामियाँ
हमें दर्प और दम्भ से दूर रखती हैं;
हमारे पाँव जमीन पर टिकाए रखती है,
हमें इंसान बनाए रखती है!‘महाइंसान’ का मुलअम्मा चढ़ाकर,
चोटी पे ले जाकर नीचे नहीं गिरने देती!
जबकि अन्दर की खूबसूरत परतों का,
गुणों का, खूबियों का एक नकारात्मक पक्ष होता हैं
वे हमे अनियन्त्रण की सीमा तक कई बार दम्भी और
घमंडी बना देती हैं, अहंकार के नर्क में
धकेल देती हैं...आपे से बाहर कर देती हैं...!
सो, अपनी अन्तर्यात्रा अधूरी मत करना!
अन्दर की सभी परतों को, सभी जगहों को
खोजना;देखना और परखना
तभी तुम्हारी अन्तर्यात्रा पूरी होगी!
ऐसी अन्तर्यात्रा किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं होती!!!
वह अन्दर जमा अहंकार और ईर्ष्या,लोभ और मोह,
झूठ और बेईमानी का कचरा छाँट देती हैं!
हमारे दृष्टिकोण को स्वस्थ और विचारों को स्वच्छ
बना देती है; हमारी तीक्ष्णता को मृदुता दे,
हम में इंसान के जीवित रहने की
सम्भावनाएँ बढ़ा देती है....!
काशी और काबा से अच्छी और सच्ची है यह यात्रा....!
जो हमें अपनी गहराईयों में उतरने का मौका देती है!
घर बैठे अच्छे और बुरे का विवेक देती है!!!