एक दिन मेरी मान लो यूँही / कांतिमोहन 'सोज़'

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यह ग़ज़ल मोहम्मद हसन साहेब की याद को समर्पित, जिन्हें यह बहुत पसन्द थी।

एक दिन मेरी मान लो यूँही ।
मैं कहूँ और तुम सुनो यूँही ।।

कौन कहता है उसपे ग़ौर करो
मेरी फ़रियाद सुन तो लो यूँही ।

कौन था मैं कि मेरी याद आए
एक दिन राह में रूको यूँही ।

देख तो लो मज़ा भी है इसमें
तुम किसीसे वफ़ा करो यूँही ।

काम क्या बेसबब नहीं होता
मेरी दुनिया में आ बसो यूँही ।

मैं न बदलूँगा तुम न बदलोगे
यूँ अगर है तो फिर चलो यूँही ।

सोज़ क्या और तुमसे होना है
शेर कहते रहा करो यूँही ।।

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