भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हँसी खेल नगई कंकन कौ / बुन्देली
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:32, 13 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
हँसी खेल नगई कंकन कौ छोरबौ लला हँसी खेल नई।
कंकन की गाँठ कठिन लागी मजबूत, देखें हम जायँ लला तुमरी करतूत,
कैसे दशरथ के पूत, परे तुम खों अब कूत
येई कठिन कला येई कठिन कला।
कंकन कौ छोरबौ लला...
कंकन कौ छोरबौ कौ बैसो न हाल, जैसो शिव धनुष तोड़ डारौ तत्काल,
ऐसौ करयो न ख्याल, जाकौ महा कठिन जाल
यहाँ चले नई चला चले नई चला।
कंकन कौ छोरबौ लला...
कंकन कौ छोरबौ न समझौ आसान, हमरौ कहौ मान,
देखें हम जायँ लला तुमरो पुरूषान, कैसो माता ने आन
दयौ तुम्हें दूध पिला दयौ तुम्हें दूध पिला।
हँसी खेल नई कंकन कौ छोरबौ लला हँसी खेल नई।