भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी / बुन्देली
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 13 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी
मोरी कतरी सुपारी न खायें।
सोने की थारी में जेवनार परोसा
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी
वे तो जेवै बहना घर जायें।
चाँदी के लोटा में पानी परोसो
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी
वे तौ पीवे बुआ के घर जायें।
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी
मोरी कतरी सुपारी न खायें।
पाना पचासी कौ बीरा लगायौ। हमसें...
वे तो चावन तमोलिन के घर जायें।
फूलों की सेज मोती झालर कौ तकिया
हमसें बलम सें ऐसी बिगरी
वे तो सोवै सोतन घर जायें।